किस ब्लड ग्रुप के कपल को प्रेग्नेंसी में आती है प्रॉब्लम? एक्सपर्ट से जानें कारण और उपाय!

ब्लड ग्रुप के कारण भी महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान परेशानियां आती हैं। जी हां, हर महिला को प्रेग्नेंसी से पहले अपने ब्लड ग्रुप के बारे में पता कर लेना चाहिए। वैसे तो आमतौर पर 4 प्रकार के ब्लड ग्रुप ए, बी, एबी और ओ होते हैं। वहीं पार्टनर का ब्लड ग्रुप सेम होने से या अलग-अलग होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन कुछ कपल के ब्लड ग्रुप ऐसे होते हैं जो बेबी कंसीव करने में दिक्कत करते हैं। डॉक्टर दीप्ति जैन से जानते हैं कि वो कौन सा ब्लड ग्रुप हैं जिसमें प्रेग्नेंसी में बहुत परेशानी आती है।
कई लोगों में इस बात को लेकर धारणा है कि अगर कपल का सेम ब्लड ग्रुप हो तो इससे बेबी कंसीव करने में दिक्कत होती है। लेकिन डॉक्टर दीप्ति जैन ने बताया कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। सेम ब्लड ग्रुप वाले पार्टनर को न तो बेबी कंसीव करने में कोई दिक्कत आती है और न ही होने वाले बच्चे को किसी भी तरह की शारीरिक परेशानी होती है। ऐसे में जिन लोगों के मन में इस बात का डर है कि ब्लड ग्रुप सेम होने पर बच्चे में दिक्कत हो सकती है तो वो बेफिक्र हो जाएं।
अब ये जान लेते हैं किस ब्लड ग्रुप वाले कपल को प्रेग्नेंसी में दिक्कत आती है। डॉक्टर के अनुसार यदि होने वाली मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव है और होने वाले पिता का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव है तो ऐसे में प्रेग्नेंसी में कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं। दरअसल ब्लड में पाए जाने वाले रीसस फैक्टर की वजह से प्रेग्नेंसी के दौरान समस्या हो सकती है। अब ये जान लेते हैं कि रीसस फैक्टर क्या होता है। दरअसल रीसस (आरएच) रेड ब्लड सेल्स में पाया जाने वाला प्रोटीन है। जिनके ब्लड में ये होता है वो आरएच पॉजिटिव होते हैं। वहीं जिनके ब्लड में इसकी कमी होती है वो आरएच नेगेटिव होते हैं।
डॉक्टर ने बताया कि यदि पार्टनर में से यदि महिला का ब्लड ग्रुप नेगेटिव है और पुरुष का पॉजिटिव है तो इससे परेशानी होती है। दरअसल ये वहीं महिला का ब्लड ग्रुप आरएच पॉजिटिव है और पुरुष का आरएच नेगेटिव है तो इससे प्रेगनेंसी में कोई दिक्कत नहीं हैं, अगर इसके विपरीत है तो दिक्कत होना लाजमी है। हालांकि पहली प्रेग्नेंसी में दिक्कत कम ही देखने को मिलती है। कई महिलाओं को बार-बार मिस कैरेज का दर्द झेलना पड़ता है। इसके लिए सावधानी के तौर पर मां बनने वाली महिला को 28 हफ्ते की प्रेग्नेंसी से ही एंटी-डी इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन दिए जाते हैं। यह इंजेक्शन होने वाले बच्चे को रीसस असंगति से होने वाले नुकसान बचाने का काम करते हैं।