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जजों के रिश्तेदार अब नहीं बनेंगे मी लॉर्ड! SC कॉलेजियम उठा सकता है!

‘जज का बेटा जज ही बनेगा’… इस तरह की आप सबने खूब लाइनें सुनी होगी. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर अक्सर ऐसी धारणा अकसर बनाई जाती रही है कि पहली पीढ़ी के वकीलों को चयन प्रक्रिया में तवज्जो नहीं दी जाती. इसकी बजाय ऐसे लोगों को जज के तौर पर प्रमोट किया जाता है, जो दूसरी पीढ़ी के वकील हों और उनके परिजन पहले से जज हों. अब इस धारणा को खत्म करने की पहल कॉलेजियम की ओर से हो सकती है. बताया तो यह भी जा रहा है कि अब  कॉलेजियम ऐसे लोगों के नामों को आगे बढ़ाने से परहेज करेगा, जिनकी परिजन या रिश्तेदार पहले से हाई कोर्ट या फिर उससे उच्चतम न्यायालय के जज हों. तो आइए जानते हैं पूरी खबर.

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम केवल उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा प्रस्तुत वकीलों और न्यायिक अधिकारियों के विस्तृत बायोडेटा, उनके पिछले जीवन पर खुफिया रिपोर्ट, साथ ही संबंधित राज्यपालों और सीएम की राय के आधार पर काम करता था. सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने TOI को बताया कि अनुशंसित उम्मीदवारों के साथ व्यक्तिगत बातचीत से उनके व्यवहार और न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए उनकी उपयुक्तता का सीधे तौर पर आकलन करने में मदद मिली.

पहली बार मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति कांत वाले कॉलेजियम ने पहली बार हाई कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए अनुशंसित वकीलों और न्यायिक अधिकारियों के साथ बातचीत शुरू की है, ताकि उनकी उपयुक्तता का परीक्षण किया जा सके और उनकी क्षमता और योग्यता का आकलन किया जा सके. शीर्ष तीन न्यायाधीशों ने इलाहाबाद, बॉम्बे और राजस्थान उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए अनुशंसित लोगों के साथ बातचीत की और 22 दिसंबर को केंद्र को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए योग्य समझे जाने वाले नामों को अग्रेषित किया.

 

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