बजट के धनुष पर मोदी सरकार ने चलाया 350 सीटों का तीर, मिडिल क्लास को खुश करना क्यों जरूरी था?
ऐसा लग रहा है कि इस बार के बजट ने मिडिल क्लास के लिए खुशियों का पिटारा खोल दिया है. कम से कम नए टैक्स स्लैब में हुए बदलावों के बाद आ रहीं प्रतिक्रियाओं को देखकर तो ऐसा ही लग रहा है. लेकिन यह सब अचानक नहीं हुआ है. इसके लिए लंबे समय से परदे के पीछे मीटिंग्स और चर्चाओं का दौर चला है. तब जाकर बजट में मोदी सरकार ने मिडिल क्लास को बड़ी राहत देते हुए एक महत्वपूर्ण ऐलान किया. अब 12 लाख रुपये तक की आय को टैक्स के दायरे से बाहर कर दिया गया है जिससे लाखों नौकरीपेशा और मध्यम वर्गीय परिवारों को सीधा फायदा होगा. यह फैसला आर्थिक रूप से इस वर्ग को संबल देने वाला है ही साथ में राजनीतिक रूप से भी अहम है. देश की लगभग 350 लोकसभा सीटों पर मिडिल क्लास की निर्णायक भूमिका मानी जाती है. यह सब कैसे हुआ इसकी क्रोनोलॉजी समझने की जरूरत है.
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले पूर्णकालिक बजट से पहले इस बात की अटकलें तेज थीं कि सरकार मिडिल क्लास के लिए कुछ बड़ी घोषणाएं करेगी. एक्सपर्ट्स का मानना है कि सरकार और बीजेपी पर इस वर्ग की बढ़ती नाराजगी का दबाव था. पिछले कुछ महीनों में मिडिल क्लास ने आर्थिक नीतियों और कर संरचना को लेकर खुलकर अपनी असंतुष्टि जाहिर की थी. यह वही तबका है जो लंबे समय से बीजेपी का मजबूत समर्थक रहा है. लेकिन हाल के दिनों में इसे लगा कि सरकार उसकी जरूरतों को अनदेखा कर रही है. इस नाराजगी को दूर करना बीजेपी के लिए जरूरी था. क्योंकि यह वर्ग चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
मध्यम वर्ग पिछले कुछ वर्षों से कई आर्थिक दबावों का सामना कर रहा था. महामारी के दौरान इस वर्ग ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में अहम भूमिका निभाई. लेकिन उसके बाद भी महंगाई, बढ़ते कर और फ्रीबीज की राजनीति के बीच इसकी उपेक्षा महसूस की जा रही थी. कई योजनाओं और सब्सिडी का लाभ आमतौर पर निम्न आय वर्ग को मिलता है जबकि अमीरों को अलग तरह की कर छूट और निवेश के अवसर उपलब्ध होते हैं. ऐसे में मिडिल क्लास खुद को एक भुला दिया गया तबका मानने लगा था. यही कारण है कि सरकार को इस वर्ग के लिए राहत देने का फैसला लेना पड़ा ताकि उनकी बढ़ती नाराजगी को रोका जा सके और समर्थन बनाए रखा जा सके.