धर्म

शंकराचार्य के निर्देश पर हुई स्थापना, 2 लाख से अधिक नागा संन्यासी; जानें पंच अटल अखाड़े का इतिहास!

श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा का मुख्यालय काशी के कतुआपुरा में स्थित है, जबकि इसका मुख्य पीठ गुजरात के पाटन में है. देशभर में इसके 500 से अधिक मठ, आश्रम, और मंदिर हैं, जो हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और त्र्यंबकेश्वर जैसे प्रमुख तीर्थ स्थलों पर स्थित हैं. अटल अखाड़े के देवता के रूप में गणेश प्रतिष्ठित हैं.

इस अखाड़े की स्थापना 569 ईस्वी में आदिगुरु शंकराचार्य के निर्देश पर गोंडवाना में की गई थी. इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा और प्रचार-प्रसार था. श्रीमहंत बलराम भारती बताते हैं कि उस समय आवाहन अखाड़े में नागा संन्यासियों की संख्या अत्यधिक हो गई थी, जिससे संचालन में कठिनाई हो रही थी. इसलिए आवाहन अखाड़े से एक भाग को अलग करके अटल अखाड़े का गठन किया गया.

अटल अखाड़े में वर्तमान में दो लाख से अधिक नागा संन्यासी और 60 हजार से अधिक महामंडलेश्वर हैं। इसके नागा संन्यासियों ने अपने साहस और पराक्रम से सनातन धर्म की रक्षा की है. ऐतिहासिक रूप से, अटल अखाड़े के नागा संन्यासियों ने मुगलों सहित विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ संघर्ष किया. 14वीं शताब्दी में खिलजी और तुगलक शासकों के हमलों का सामना सबसे पहले अटल अखाड़े के नागाओं ने ही किया.

अखाड़ों की आंतरिक न्याय प्रणाली में श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा सर्वोच्च स्थान रखता है. इस अखाड़े के श्रीशंभू पंच को अन्य सभी अखाड़ों का सरपंच माना जाता है. 13 अखाड़ों के बीच किसी भी विवाद या नीतिगत फैसलों के लिए होने वाली बैठकों में श्रीशंभू पंच का आसन प्रमुख होता है.

महाकुंभ के नगर प्रवेश और पेशवाई (छावनी प्रवेश) में श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़े की अगुवाई में आदि गणेश देवता की शोभायात्रा निकलती है. इसके बाद भस्म-भभूत से लिपटे अस्त्र-शस्त्रधारी नागा संन्यासी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं.

कहा जाता है कि मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष के एक रविवार को वनखंडी भारती, सागर भारती, और अन्य संतों ने मिलकर इस अखाड़े की स्थापना की थी. इस अखाड़े का प्रतीक चिह्न अष्टकोणीय तिलक है, जो इसके नागा संन्यासियों की पहचान है! अटल अखाड़ा न केवल धर्म की रक्षा का प्रतीक है, बल्कि इसका योगदान सामाजिक न्याय और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.

Related Articles

Back to top button