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एक देश एक चुनाव, यह बिल पास हो जाए तो भी 10 साल लग जाएंगे!

एक देश एक चुनाव की गहमागहमी ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लंबे समय से चली आ रही इस योजना का उद्देश्य देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना है, जिससे चुनावी खर्च और प्रशासनिक बोझ को कम किया जा सके. वर्तमान में लोकसभा और तमाम की विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे कई चुनौतियां खड़ी होती हैं. इसको ऐसे समझिए कि अगर चुनाव साथ होने लगेंगे तो अलग-अलग होने पर चुनावी खर्चों को एक ही बार कर सकेंगे और काफी पैसे बचेंगे. लेकिन यह राह आसान नहीं है. अगर संसद कानून भी बना दे तो इसमें कम से कम 10 साल लग जाएंगे.

सितंबर में सरकार ने रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दी थी. इसके बाद, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को इस योजना को लागू करने के लिए विधेयक का मसौदा तैयार करने का निर्णय लिया. सरकार अब इस विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करने की तैयारी में है.

एक देश, एक चुनाव लागू करने के लिए सबसे पहले संवैधानिक संशोधन जरूरी है. इसके तहत पांच प्रमुख अनुच्छेदों में बदलाव करना होगा—अनुच्छेद 83, 85, 172, 174, और 356. ये अनुच्छेद लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल, भंग करने के अधिकार, और राष्ट्रपति शासन से संबंधित हैं.

सरकार को विधेयक संसद में पारित करवाने के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत जुटाना होगा. इसके अलावा, कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं से इसे मंजूरी दिलानी होगी. इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से यह कानून बन सकेगा.

एक बार कानून बनने के बाद भी, इसे लागू करने के लिए कई चरणों में काम करना होगा. चुनाव आयोग को अधिक संख्या में ईवीएम और वीवीपैट की आवश्यकता होगी, जिनके निर्माण और परीक्षण में समय लगेगा.

एक्सपर्ट्स के मुतबिक इस विधेयक के बिना किसी बदलाव के पारित होने पर भी इसे पूरी तरह लागू होने में 10 साल का समय लग सकता है. इसका कारण यह है कि मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल 2029 में समाप्त होगा, और उसके बाद निर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक के दौरान इसे अधिसूचित किया जाएगा. चुनाव आयोग के अनुसार, एक साथ चुनाव कराने के लिए आवश्यक ईवीएम और अन्य संसाधनों की व्यवस्था में कम से कम तीन साल लगेंगे. इसके अलावा, यदि जल्दबाजी में कदम उठाए गए, तो तकनीकी और प्रशासनिक खामियां आ सकती हैं.

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