वैसे तो हम अंदर की बात पर यकीन कुछ कम ही करते हैं, लेकिन जब बात अंदर ही अंदर घमासान मचा दे और कांग्रेसी दिग्गजों में खलबली मचा दे तो फिर अंदर की बात कर ही लेनी चाहिए। ये अंदर की बात मध्य प्रदेश के चुनावी महासंग्राम में उतरने वाले कांग्रेसी प्रत्याशियों की है। कल ही कि बात है सोशल मीडिया और न्यूज पोर्टलों के हैंडल पर पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल की हस्ताक्षरित 55 कांग्रेस प्रत्याशियों की एक सूची उड़ान भर रही थी। सूची में नाम देख कांग्रेसी समर्थकों ने अपने अपने प्रत्याशी नेताओं को ताबड़तोड़ बधाई देने का सिलसिला भी जारी कर दिया था । वहीं दूसरी तरफ सूची में परिवारवाद और पैसेवाद की ताकत से मात खाने वाले कर्मठ कांग्रेसी नेताओं ने अपना विरोध जताना शुरु दिया। विरोध के सुर बगावती होकर अंदर से बाहर आते इससे पहले ही मध्य प्रदेश चुनाव प्रभारी ने कमान संभाली और सूची का खंडन जारी कर दिया। कहा कि कुछ सोशल मीडिया ग्रुप में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस प्रत्याशी की सूची जारी होने की झूठी खबर फैलाई जा रही है। ऐसी कोई भी सूची नहीं जारी हुई है। इस कूटरचित सूची को बनाने वालों पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी।
खैर आप सोच रहे होंगे इसमें अंदर की बात क्या है, ये तो सभी को पता है। फिर जो हमें अदर से पता चला है वो बता देते हैं। कहा जा रहा है कि ये सूची प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की सहमति से जारी की गई थी। इस सूची को पार्टी में हंसिया पर जा चुके दिग्विजय सिंह की भी मौन स्वीकृति थी। मध्य प्रदेश के चुनाव प्रभारी सुरजेवाला को भी दोनों नेता ने विश्वास में ले लिया था कि यही प्रत्याशी ही पार्टी के उचित और उम्दा दावेदार हैं। लेकिन का एक तीसरा खेमा जिसने संघर्ष से कांग्रेस में अपनी जमीन बनाई है उसने इस सूची का विरोध कर दिया । कमलनाथ से राजनीतिक अदावत रखने वाले पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और उनके खास सहयोगी जीतू पटवारी ने टिकट बंटवारे में परिवारवाद और पैसेवाद का आरोप लगाना शुरु कर दिया। इसको लेकर उन्होंने चुनाव प्रभारी सुरजेवाला से अपना विरोध जताया और कहा कि ये तानाशाही बर्दाश्त नहीं होगी। कहा जा रहा है उन्होंने सुरजेवाला से साफ साफ कह दिया था अगर उनकी बात नही सुनी गई तो वो अपना अलग रास्ता बनाने के लिए विवश होंगे।
खैर, अंदर से बात तो यह भी पता चली है कि ये बात दिल्ली स्थित दस जनपथ तक पहुंच गई थी। चुनाव करीब देख पार्टी में कोई टूट और बगावत कांग्रेस नेतृत्व भी नहीं देखना चाहता था। जिसके बाद लिस्ट को रद्द करने की बात की सहमति बनी थी। सुना तो ये भी गया है कि लिस्ट के फर्जी होने का आइडिया कमलनाथ का दिया हुआ था। ताकि पार्टी औऱ खुद की फजीहत होने से बचाया जा सके।